धन-धन भाग हमारे आचार्य संजीव 'सलिल' धन-धन भाग हमारे, प्रभु द्वारे पधारे। शरणागत को तारें, प्रभु द्वारे पधारे.... माटी तन, चंचल अंतर्मन, परस हो प्रभु, करदो कंचन। जनगण नित्य पुकारे, प्रभु द्वारे पधारे.... प्रीत की रीत हमेशा निभायी, लाज भगत की सदा बचाई। कबहूँ न तनक बिसारे, प्रभु द्वारे पधारे... मिथ्या जग की तृष्णा-माया, अक्षय प्रभु की अमृत छाया। मिल जय-जय गुंजा रे, प्रभु द्वारे पधारे... आस-श्वास सी दोऊ...
शनिवार, 4 अप्रैल 2009
चित्रगुप्त भजन,
धन-धन भाग हमारे,
प्रभु द्वारे पधारे। आचार्य संजीव 'सलिल'
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