Friday, April 11, 2025

शनिवार, 24 जुलाई 2010

चित्रगुप्त महिमा - आचार्य संजीव 'सलिल'

चित्रगुप्त महिमा - आचार्य संजीव 'सलिल' * चित्र-चित्र में गुप्त जो, उसको विनत प्रणाम। वह कण-कण में रम रहा, तृण-तृण उसका धाम । विधि-हरि-हर उसने रचे, देकर शक्ति अनंत। वह अनादि-ओंकार है, ध्याते उसको संत। कल-कल,छन-छन में वही, बसता अनहद नाद। कोई न उसके पूर्व है, कोई न उसके बाद। वही रमा गुंजार में, वही थाप, वह नाद। निराकार साकार वह, नेह नर्मदा नाद। 'सलिल' साधना का वही, सिर्फ़ सहारा एक। उस पर ही करता...