
चित्र पर कविता: संजीव*
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अगम अनाहद नाद हीं, सकल सृष्टि का मूल
व्यक्त करें लिख ॐ हम, सत्य कभी मत भूल
निराकार ओंकार का, चित्र न कोई एक
चित्र गुप्त कहते जिसे, उसकाचित्र हरेक
सृष्टि रचे परब्रम्ह वह, पाले विष्णु हरीश नष्ट करे शिव बन 'सलिल', कहते सदा मनीष कंकर-कंकर में रमा, शंका का कर अन्त
अमृत-विष...