राघव ने शिव भक्तिमय, दिया गुंजा स्तोत्र।
शिव भक्तों का एक ही होता है कुल-गोत्र।।
डम-डम, डिम-डिम नाद सुन, कांपे निशिचर-दुष्ट।
बम-बम-भोले नाचते, भक्त तुम्हारे तुष्ट।।
प्रलयंकर-शंकर हरे!, हर हर बाधा-कष्ट।
नेत्र तीसरा खोलकर, करो पाप सब नष्ट॥
नाचो-नाचो रुद्र हे!, नर्मदेश ओंकार।
नाद-ताल-सुर-थाप का, रचो नया संसार॥
कार्तिकेय!-विघ्नेश्वर!, जगदम्बे हो साथ।
सत-शिव-सुंदर पर रखो, दया दृष्टिमय हाथ॥
सदय रहो सलिलेश हे!, हरो सकल आतंक।
तोड़ो भ्रष्टाचार का, तीक्ष्ण-विषैला डंक॥
दिक् अम्बर ओढे हुए, हैं शशीश-त्रिपुरारि।
नाश और निर्माण के, देव अटल असुरारि॥