सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

श्री चित्रगुप्त रहस्य




राघव ने शिव भक्तिमय, दिया गुंजा स्तोत्र।


शिव भक्तों का एक ही होता है कुल-गोत्र।।


डम-डम, डिम-डिम नाद सुन, कांपे निशिचर-दुष्ट।


बम-बम-भोले नाचते, भक्त तुम्हारे तुष्ट।।


प्रलयंकर-शंकर हरे!, हर हर बाधा-कष्ट।


नेत्र तीसरा खोलकर, करो पाप सब नष्ट॥


नाचो-नाचो रुद्र हे!, नर्मदेश ओंकार।


नाद-ताल-सुर-थाप का, रचो नया संसार॥


कार्तिकेय!-विघ्नेश्वर!, जगदम्बे हो साथ।


सत-शिव-सुंदर पर रखो, दया दृष्टिमय हाथ॥


सदय रहो सलिलेश हे!, हरो सकल आतंक।


तोड़ो भ्रष्टाचार का, तीक्ष्ण-विषैला डंक॥


दिक् अम्बर ओढे हुए, हैं शशीश-त्रिपुरारि।


नाश और निर्माण के, देव अटल असुरारि॥



0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें