बुधवार, 23 दिसंबर 2009

गीतिका: बिना नाव पतवार हुए हैं. -संजीव 'सलिल'

गीतिका:

संजीव 'सलिल'

बिना नाव पतवार हुए हैं.
क्यों गुलाब के खार हुए हैं.

दर्शन बिन बेज़ार बहुत थे.
कर दर्शन बेज़ार हुए हैं.

तेवर बिन लिख रहे तेवरी.
जल बिन भाटा-ज्वार हुए हैं.

माली लूट रहे बगिया को-
जनप्रतिनिधि बटमार हुए हैं.

कल तक थे मनुहार मृदुल जो,
बिना बात तकरार हुए हैं.

सहकर चोट, मौन मुस्काते,
हम सितार के तार हुए हैं.

महानगर की हवा विषैली.
विघटित घर-परिवार हुए हैं.

सुधर न पाई है पगडण्डी,
अनगिन मगर सुधार हुए हैं.

समय-शिला पर कोशिश बादल,
'सलिल' अमिय की धार हुए हैं.

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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

कविता: कायस्थ -प्रतिभा

pratibha_saksena@yahoo.com

'चित्त-चित्त में गुप्त हैं, चित्रगुप्त परमात्म.

गुप्त चित्र निज देख ले,'सलिल' धन्य हो आत्म.'

आचार्य जी,

'गागर मे सागर' भरने की कला के प्रमाण हैं आपके दोहे । नमन करती हूँ !

उपरोक्त दोहे से अपनी एक कविता याद आ गई प्रस्तुत है -

कायस्थ

कोई पूछता है मेरी जाति

मुझे हँसी आती है

मैं तो काया में स्थित आत्म हूँ !

न ब्राह्मण, न क्षत्री, न वैश्य, न शूद्र ,

कोई जाति नहीं मेरी,

लोगों ने जो बना रखी हैं !

मैं नहीं जन्मा हूँ मुँह से,

न हाथ से, न पेट से, न पैर से,

किसी अकेले अंग से नहीं !

उस चिद्आत्म के पूरे तन

और भावन से प्रकटित स्वरूप- मैं,

सचेत, स्वतंत्र,निर्बंध!

सहज मानव, पूर्वाग्रह रहित!

मुझे परहेज़ नहीं नये विचारों से,

ढाल लेता हूँ स्वयं को

समय के अनुरूप !

पढ़ता-लिखता,

सोच-विचार कर

लेखा-जोखा करता हूँ

इस दुनिया का !

रचा तुमने,

चेतना का एक चित्र

जो गुप्त था तुम्हारे चित्त में,

ढाल दिया उसे काया में!

कायस्थ हूँ मैं!

प्रभु!अच्छा किया तुमने,

कि कोई जाति न दे

मुझे कायस्थ बनाया !

- प्रतिभा.

ambarishji@gmail.com की छवियां हमेशा प्रदर्शित करें

आदरणीय आचार्य जी ,
महराज चित्रगुप्त को नमन करते हुए मैं आदरणीया प्रतिभा जी से प्रेरित होकर की राह में चल रहा हूँ |

कायस्थ
मनुज योनि के सृजक हैं, ब्रह्माजी महराज |
सकल सृष्टि उनकी रची, उनमें जग का राज ||


मुखारबिंदु से ब्राह्मण, भुजा से क्षत्रिय पूत |
वैश्य जनम है उदर से, जंघा से सब शूद्र ||


धर्मराज व्याकुल हुए, लख चौरासी योनि |
संकट भारी हो रहा, लेखा देखे कौन |


ब्रह्माजी को तब हुआ, भगवन का आदेश |
ग्यारह शतकों तप करो , प्रकटें स्वयं यमेश ||

काया से उत्त्पन्न हैं, कहते वेद पुराण |
व्योम संहिता में मिले , कुल कायस्थ प्रमाण ||


चित्त साधना से हुए , गुप्त रखें सब काम |
ब्रह्माजी नें तब रखा, चित्रगुप्त शुभ नाम ||


ब्राह्मण सम कायस्थ हैं , सुरभित सम सुप्रभात |
ब्रह्म कायस्थ जगत में, कब से है विख्यात ||


प्रतिभा शील विनम्रता, निर्मल सरस विचार |
पर-उपकार सदाचरण, इनका है आधार ||


सबको आदर दे रहे, रखते सबका मान |
सारे जग के मित्र हैं, सदगुण की ये खान ||

दुनिया में फैले सदा, विद्या बिंदु प्रकाश |
एक सभी कायस्थ हों, मिलकर करें प्रयास ||


कायस्थों की कामना, सब होवें कायस्थ |
सूर्य ज्ञान का विश्व में, कभी ना होवे अस्त ||
सादर,
--अम्बरीष श्रीवास्तव (Architectural Engineer)
91, Agha Colony, Civil Lines Sitapur (U. P.)Mobile 09415047020

रविवार, 20 सितंबर 2009

कायस्थ युवक-युवती परिचय सम्मलेन भिलाई

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कायस्थ युवक-युवती परिचय सम्मलेन भिलाई

13 दिसम्बर 2009

आयोजक

चित्रांश चर्चा मासिक एवं चित्रांश चेतना मंच

पंजीयन शुल्क रु. 151/-

अन्य विवरण के लिए संपर्क

दूरभाष: श्री देवेन्द्र नाथ - 0788-2290864

श्री अरुण श्रीवास्तव 'विनीत'09425201251

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शनिवार, 4 अप्रैल 2009

चित्रगुप्त भजन :

धन-धन भाग हमारे

आचार्य संजीव 'सलिल'

धन-धन भाग हमारे, प्रभु द्वारे पधारे।

शरणागत को तारें, प्रभु द्वारे पधारे....

माटी तन, चंचल अंतर्मन, परस हो प्रभु, करदो कंचन।

जनगण नित्य पुकारे, प्रभु द्वारे पधारे....

प्रीत की रीत हमेशा निभायी, लाज भगत की सदा बचाई।

कबहूँ न तनक बिसारे, प्रभु द्वारे पधारे...

मिथ्या जग की तृष्णा-माया, अक्षय प्रभु की अमृत छाया।

मिल जय-जय गुंजा रे, प्रभु द्वारे पधारे...

आस-श्वास सी दोऊ मैया, ममतामय आँचल दे छैंया।

सुत का भाग जगा रे, प्रभु द्वारे पधारे...

नेह नर्मदा संबंधों की, जन्म-जन्म के अनुबंधों की।

नाते 'सलिल' निभा रे, प्रभु द्वारे पधारे...

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गुरुवार, 26 मार्च 2009

मातृ वंदना - संजीव 'सलिल'


ममतामयी माँनंदिनी-करुणामयी माँ इरावती।
सन्तान तेरी मिल उतारें, भाव-भक्ति से आरती...

लीला तुम्हारी हम न जानें, भ्रमित होकर हैं दुखी।
सत्पथ दिखाओ माँ, बने सन्तान सब तेरी सुखी॥
निर्मल ह्रदय के भाव हों, किंचित न कहीं अभाव हों-
सात्विक रहे आचार, माता सदय रहो निहारती..

कुछ काम जग के आ सकें, महिमा तुम्हारी गा सकें।
सत्कर्म कर आशीष मैया!, पुत्र तेरे पा सकें॥
निष्काम औ' निष्पक्ष रह, सब मोक्ष पायें अंत में-
निश्छल रहें मन-प्राण, वाणी नित तम्हें गुहारती...

चित्रेश प्रभु केकृपा मैया!, आप ही दिलवाइये।
जैसे भी हैं, हैं पुत्र माता!, मत हमें ठुकराइए॥
कंकर से शंकर बन सकें, सत-शिव औ' सुंदर वर सकें-
साधना कर सफल, क्यों मुझ 'सलिल' को बिसारती...

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मंगलवार, 17 मार्च 2009

चित्रगुप्त वंदना -संजीव 'सलिल'


चित्र-चित्र में गुप्त जो, उसको विनत प्रणाम।
वह कण-कण में रम रहा, तृण-तृण उसका धाम ।

विधि-हरी-हर उसने रचे, देकर शक्ति अनंत।
वह अनादि-ओंकार है, ध्याते उसको संत।

कल-कल,छन-छन में वही, बसता अनहद नाद।
कोई न उसके पूर्व है, कोई न उसके बाद।

वही रमा गुंजार में, वही थाप, वह ताल।
निराकार साकार वह, उससे सृष्टि निहाल।

'सलिल' साधना का वही, सिर्फ़ सहारा एक।
उस पर ही करता कृपा, काम करे जो नेक।

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सोमवार, 16 मार्च 2009

चित्रगुप्त महिमा

चित्रगुप्त महिमा

जय-जय प्रभु चित्रेश की, नमन करुँ नत माथ।

जब भी जाऊँ जगत से, जाऊँ खाली हाथ।

जाऊँ खाली हाथ, न कोई राग-द्वेष हो।

कर्मों के फल भोग, सकूँ वह शक्ति देव दो।

करुणाकर करुणासागर कर में समेत लो।

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श्री भगवान

मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

जब मेरे प्रभु जग में आवें, नभ से देव सुमन बरसावें।
कलम-दवात सुशोभित कर में, देते अक्षर ज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

चित्रगुप्त प्रभु शब्द-शक्ति हैं, माँ सरस्वती नाद शक्ति हैं।
ध्वनि अक्षर का मेल ऋचाएं, मन्त्र-श्लोक विज्ञान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

मातु नंदिनी आदिशक्ति हैं। माँ इरावती मोह-मुक्ति हैं.
इडा-पिंगला रिद्धि-सिद्धिवत, करती जग-उत्थान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

कण-कण में जो चित्र गुप्त है, कर्म-लेख वह चित्रगुप्त है।
कायस्थ है काया में स्थित, आत्मा महिमावान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

विधि-हरि-हर रच-पाल-मिटायें, अनहद सुन योगी तर जायें।
रमा-शारदा-शक्ति करें नित, जड़-चेतन कल्याण
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

श्यामल मुखछवि, रूप सुहाना, जैसा बोना वैसा पाना।
कर्म न कोई छिपे ईश से, 'सलिल' रहे अनजान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

लोभ-मोह-विद्वेष-काम तज, करुणासागर प्रभु का नाम भज।
कर सत्कर्म 'शान्ति' पा ले, दुष्कर्म अशांति विधान
मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...

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सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

श्री चित्रगुप्त रहस्य




राघव ने शिव भक्तिमय, दिया गुंजा स्तोत्र।


शिव भक्तों का एक ही होता है कुल-गोत्र।।


डम-डम, डिम-डिम नाद सुन, कांपे निशिचर-दुष्ट।


बम-बम-भोले नाचते, भक्त तुम्हारे तुष्ट।।


प्रलयंकर-शंकर हरे!, हर हर बाधा-कष्ट।


नेत्र तीसरा खोलकर, करो पाप सब नष्ट॥


नाचो-नाचो रुद्र हे!, नर्मदेश ओंकार।


नाद-ताल-सुर-थाप का, रचो नया संसार॥


कार्तिकेय!-विघ्नेश्वर!, जगदम्बे हो साथ।


सत-शिव-सुंदर पर रखो, दया दृष्टिमय हाथ॥


सदय रहो सलिलेश हे!, हरो सकल आतंक।


तोड़ो भ्रष्टाचार का, तीक्ष्ण-विषैला डंक॥


दिक् अम्बर ओढे हुए, हैं शशीश-त्रिपुरारि।


नाश और निर्माण के, देव अटल असुरारि॥



सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

चित्रगुप्त भजन : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में

श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में

श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में, श्रृद्धा सहित प्रणाम करें।
तृष्णा-माया-मोह त्यागकर, परम पिता का ध्यान धरें।
श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....

लिपि- लेखनीके आविष्कर्ता, मानव-मन के पीड़ा-हर्ता।
कर्म-देव प्रभु, कर्म-प्रमुख जग, नित गुणगान करें।
श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....

किए वर्ण स्थापित चार, रचा व्यस्थित सब संसार।
जैसी करनी वैसी भरनी, मत अभिमान करें।
श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....

है दहेज़ दानव विकराल, आरक्षण प्रतिभा का काल।
सेवक तेरे स्वामी बनकर, श्रम का मान करें।
श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....

कायथ की पहचान कर्म है, नीति-निपुणता सत्य-धर्म है।
मर्म-कुशलता-व्यावहारिकता, कर्म महँ करें।
श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....


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चित्रगुप्त भजन : हे चित्रगुप्त भगवान - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'


हे चित्रगुप्त भगवान! करुँ गुणगान, दया प्रभु कीजे, विनती मोरी सुन ...
जनम-जनम से भटक रहे हम, चमक-दमक में अटक रहे हम।
भव सागर में दुःख भोगें, उद्धार हमारा कीजे, विनती मोरी सुन लीजे...
हम याचक, विधि -हरि-हर दाता, भक्ति अटल दो भाग्य-विधाता।
मुक्ति पा सकें कर्म-चक्र से, युक्ति बता प्रभु! दीजे...
सकल सृष्टि के हे अवतारक!, लिपि-लेखनी-मसि आविष्कारक।
हे जनगण-मन के अधिनायक !, सब जग तुम पर रीझे ...
चर - अचरों में वस् तुम्हारा, तुम ही सबका एक सहारा।
शब्द-नाद मय तन-मन कर दो, चरण-शरण प्रभु दीजे...
करो कृपा हे देव! दयालु, लक्ष्मी-शारद-शक्ति कृपालु।
'सलिल' शरण है जनम-जनम से, सफल साधना कीजे...
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