Sunday, April 13, 2025

बुधवार, 23 दिसंबर 2009

गीतिका: बिना नाव पतवार हुए हैं. -संजीव 'सलिल'

गीतिका: संजीव 'सलिल' बिना नाव पतवार हुए हैं. क्यों गुलाब के खार हुए हैं. दर्शन बिन बेज़ार बहुत थे. कर दर्शन बेज़ार हुए हैं. तेवर बिन लिख रहे तेवरी. जल बिन भाटा-ज्वार हुए हैं. माली लूट रहे बगिया को- जनप्रतिनिधि बटमार हुए हैं. कल तक थे मनुहार मृदुल जो, बिना बात तकरार हुए हैं. सहकर चोट, मौन मुस्काते, हम सितार के तार हुए हैं. महानगर की हवा विषैली. विघटित घर-परिवार हुए हैं. सुधर न पाई है पगडण्डी, अनगिन...

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

कविता: कायस्थ -प्रतिभा

pratibha_saksena@yahoo.com 'चित्त-चित्त में गुप्त हैं, चित्रगुप्त परमात्म. गुप्त चित्र निज देख ले,'सलिल' धन्य हो आत्म.' आचार्य जी, 'गागर मे सागर' भरने की कला के प्रमाण हैं आपके दोहे । नमन करती हूँ ! उपरोक्त दोहे से अपनी एक कविता याद आ गई प्रस्तुत है - कायस्थ कोई पूछता है मेरी जाति मुझे हँसी आती है मैं तो काया में स्थित आत्म हूँ ! न ब्राह्मण, न क्षत्री, न वैश्य, न शूद्र , कोई जाति नहीं...

रविवार, 20 सितंबर 2009

कायस्थ युवक-युवती परिचय सम्मलेन भिलाई

****************************** कायस्थ युवक-युवती परिचय सम्मलेन भिलाई 13 दिसम्बर 2009 आयोजक चित्रांश चर्चा मासिक एवं चित्रांश चेतना मंच पंजीयन शुल्क रु. 151/- अन्य विवरण के लिए संपर्क दूरभाष: श्री देवेन्द्र नाथ - 0788-2290864 श्री अरुण श्रीवास्तव 'विनीत'09425201251 *************************************...

शनिवार, 4 अप्रैल 2009

चित्रगुप्त भजन :

धन-धन भाग हमारे आचार्य संजीव 'सलिल' धन-धन भाग हमारे, प्रभु द्वारे पधारे। शरणागत को तारें, प्रभु द्वारे पधारे.... माटी तन, चंचल अंतर्मन, परस हो प्रभु, करदो कंचन। जनगण नित्य पुकारे, प्रभु द्वारे पधारे.... प्रीत की रीत हमेशा निभायी, लाज भगत की सदा बचाई। कबहूँ न तनक बिसारे, प्रभु द्वारे पधारे... मिथ्या जग की तृष्णा-माया, अक्षय प्रभु की अमृत छाया। मिल जय-जय गुंजा रे, प्रभु द्वारे पधारे... आस-श्वास सी दोऊ...

गुरुवार, 26 मार्च 2009

मातृ वंदना - संजीव 'सलिल'

ममतामयी माँनंदिनी-करुणामयी माँ इरावती।सन्तान तेरी मिल उतारें, भाव-भक्ति से आरती...लीला तुम्हारी हम न जानें, भ्रमित होकर हैं दुखी।सत्पथ दिखाओ माँ, बने सन्तान सब तेरी सुखी॥निर्मल ह्रदय के भाव हों, किंचित न कहीं अभाव हों-सात्विक रहे आचार, माता सदय रहो निहारती..कुछ काम जग के आ सकें, महिमा तुम्हारी गा सकें।सत्कर्म कर आशीष मैया!, पुत्र तेरे पा...

मंगलवार, 17 मार्च 2009

चित्रगुप्त वंदना -संजीव 'सलिल'

चित्र-चित्र में गुप्त जो, उसको विनत प्रणाम।वह कण-कण में रम रहा, तृण-तृण उसका धाम ।विधि-हरी-हर उसने रचे, देकर शक्ति अनंत।वह अनादि-ओंकार है, ध्याते उसको संत।कल-कल,छन-छन में वही, बसता अनहद नाद।कोई न उसके पूर्व है, कोई न उसके बाद।वही रमा गुंजार में, वही थाप, वह ताल।निराकार साकार वह, उससे सृष्टि निहाल।'सलिल' साधना का वही, सिर्फ़ सहारा एक।उस पर...

सोमवार, 16 मार्च 2009

चित्रगुप्त महिमा

चित्रगुप्त महिमा जय-जय प्रभु चित्रेश की, नमन करुँ नत माथ।जब भी जाऊँ जगत से, जाऊँ खाली हाथ।जाऊँ खाली हाथ, न कोई राग-द्वेष हो।कर्मों के फल भोग, सकूँ वह शक्ति देव दो।करुणाकर करुणासागर कर में समेत लो। ***************************...
श्री भगवानमिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...जब मेरे प्रभु जग में आवें, नभ से देव सुमन बरसावें।कलम-दवात सुशोभित कर में, देते अक्षर ज्ञानमिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्...चित्रगुप्त प्रभु शब्द-शक्ति हैं, माँ सरस्वती नाद शक्ति हैं।ध्वनि अक्षर का मेल ऋचाएं, मन्त्र-श्लोक विज्ञानमिटाने भक्तों का दुःख-दर्द,...

सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

श्री चित्रगुप्त रहस्य

राघव ने शिव भक्तिमय, दिया गुंजा स्तोत्र।शिव भक्तों का एक ही होता है कुल-गोत्र।।डम-डम, डिम-डिम नाद सुन, कांपे निशिचर-दुष्ट।बम-बम-भोले नाचते, भक्त तुम्हारे तुष्ट।।प्रलयंकर-शंकर हरे!, हर हर बाधा-कष्ट।नेत्र तीसरा खोलकर, करो पाप सब नष्ट॥नाचो-नाचो रुद्र हे!, नर्मदेश ओंकार।नाद-ताल-सुर-थाप का, रचो नया संसार॥कार्तिकेय!-विघ्नेश्वर!, जगदम्बे हो साथ।...

सोमवार, 16 फ़रवरी 2009

चित्रगुप्त भजन : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' - श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में

श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में, श्रृद्धा सहित प्रणाम करें।तृष्णा-माया-मोह त्यागकर, परम पिता का ध्यान धरें।श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....लिपि- लेखनीके आविष्कर्ता, मानव-मन के पीड़ा-हर्ता।कर्म-देव प्रभु, कर्म-प्रमुख जग, नित गुणगान करें।श्री चित्रगुप्त के श्री चरणों में.....किए वर्ण स्थापित चार, रचा...

चित्रगुप्त भजन : हे चित्रगुप्त भगवान - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

हे चित्रगुप्त भगवान! करुँ गुणगान, दया प्रभु कीजे, विनती मोरी सुन ...जनम-जनम से भटक रहे हम, चमक-दमक में अटक रहे हम।भव सागर में दुःख भोगें, उद्धार हमारा कीजे, विनती मोरी सुन लीजे...हम याचक, विधि -हरि-हर दाता, भक्ति अटल दो भाग्य-विधाता।मुक्ति पा सकें कर्म-चक्र से, युक्ति बता प्रभु! दीजे...सकल सृष्टि के हे अवतारक!, लिपि-लेखनी-मसि आविष्कारक।हे...